आईजीएनटीयू में पीएचडी प्रवेश घोटाले पर हाईकोर्ट गंभीर, अगली सुनवाई में मंगाई गई संदिग्ध प्रवेशार्थियों की सूची

आईजीएनटीयू में पीएचडी प्रवेश घोटाले पर हाईकोर्ट गंभीर, अगली सुनवाई में मंगाई गई संदिग्ध प्रवेशार्थियों की सूची

*पीड़ित छात्रों ने सीबीआई जांच की मांग की*


अनूपपुर

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (म.प्र.) में पीएच.डी. शोध प्रवेश परीक्षा (आरईटी) 2024-25 को लेकर गंभीर गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार के आरोपों पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर में रिट पिटीशन लगाई गई है, याचिकाकर्ता रवि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर 1 अगस्त को सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता ने अदालत से समय की मांग करते हुए बताया कि उन चयनित संदिग्ध अभ्यर्थियों के नाम और पते मांगे हैं जिन्हें प्रतिवादी बनाया जाना जरूरी है, यह भी बताया गया कि विश्वविद्यालय प्रबंधन छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन करने पर आमादा है। उच्च न्यायालय ने मामले की आगामी सुनवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह में रखी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि न्यायालय भी इस मामले को गंभीरता से ले रहा है।

सीबीआई जांच की मांग, छात्रों ने लगाए दर्जनों ठोस आरोप

याचिकाकर्ता रवि त्रिपाठी, जो कि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र एवं आरईटी 2024-25 के परीक्षार्थी हैं, ने केंद्र सरकार को भेजे प्रार्थना पत्र में प्रवेश प्रक्रिया में सुनियोजित गड़बड़ियों और संगठित शैक्षणिक भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। उन्होंने पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की है और इसके समर्थन में आरटीआई के जवाब, विश्वविद्यालय की वेबसाइट के स्क्रीनशॉट्स, अधिसूचनाएं एवं अन्य कई दस्तावेज संलग्न किए हैं।

*दागियों को ही जरुरी प्रभारों का प्रसाद क्यों*

पूर्व में पीएचडी प्रवेश परीक्षा के मामले में वर्तमान आरईटी समन्वयक प्रो. भूमि नाथ त्रिपाठी पर गंभीर आरोप लग चुके थें, प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत भी की गई थी, इसके बाद इस वर्ष भी इन्हें ही आरईटी की जिम्मेदारी कैसे दे दी गई? यह भी जांच का विषय है, हालांकि जांच के विषय तो इन्हें आईजीएनटीयू मे दिए गए नियुक्ति (पुलिस वेरिफिकेशन आदि) एवं पदोन्नति, या प्रभार वितरण संबंधी दस्तावेज भी हैं।

*प्रो. गौरी शंकर और तरुण ठाकुर भी जांच के राडार मे*

उक्त आरईटी परीक्षा से संबंधित  200 से अधिक शिकायतें ईमेल आदि से आई हैं, जिसमे से दो दर्जन से अधिक शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय में भी दी गई हैं, इसके बाद प्रो. गौरी शंकर महापात्रा और प्रो. तरुण ठाकुर जैसे संदिग्धों को पीएमओ में की गई शिकायत का नोडल अधिकारी नियुक्त कर के मनगढ़ंत रिपोर्ट लिखी जा रही है। इन दोनों के संबंध में चर्चा है कि इन दोनों प्रोफेसर ने अपने कई खासमखासों को पीएचडी में बैक डोर से इंट्री दिलाए हैं! ऐसे में कैसे होगी निष्पक्ष जांच?

*यह लगे आरोप*

आरईटी समन्वयक ने प्रश्नपत्र निजी ईमेल से मंगवाए, जिससे प्रश्नपत्र लीक होने की आशंका बढ़ती है। मुख्य परिसर में जारी परिणामों में नाम नहीं दिए गए जबकि मणिपुर परिसर के लिए जारी परिणाम में छात्रों के नाम स्पष्ट हैं। विश्वविद्यालय मुख्य परिसर के परिणाम में नाम इसलिए नहीं दिए गए कि उसमे दर्जनों नॉन टीचिंग स्टाफ, कई प्रोफेसर्स की पत्नियां, परिजन, रिस्तेदार आदि हैं। कुछ उम्मीदवारों को कम अंक होने के बावजूद इंटरव्यू में बुलाकर बैकडोर से इंट्री दी गई। कंप्यूटर साइंस जैसे विभागों में परिणाम वेबसाइट पर प्रकाशित न कर गुप्त रूप से निजी ईमेल से प्रवेश की सूचना दी गई। जिसमें एक गेट क्वालिफाई डीआरडीओ के डिप्टी डायरेक्टर रैंक के अधिकारी जो कि इंटरव्यू में भी टाॅप किया था उसका नाम फाइनल लिस्ट से हटा कर उसकी जगह विश्वविद्यालय परिसर में किराना दुकान संचालक का नाम लिखा गया।

50 से अधिक नॉन-टीचिंग स्टाफ एवं फैकल्टी परिजनों को संदिग्ध डिग्रियों के आधार पर प्रवेश दिया गया। कई तो ऐसे हैं जो ओपन बोर्ड से जैसे-तैसे पीजी किएं या डिग्री काॅलेमे भी लटकते हुए पोस्ट ग्रेजुएशन किएं और आईजीएनटीयू की आरईटी में बाकायदा टाॅप हो गएं आखिर कैसे? ओएमआर शीट घरों में भरने जैसी शिकायतें भी सामने आईं।

छात्रों से शुल्क तो लिया गया लेकिन न रिचेकिंग की गई, न ही रिपोर्ट दी गई। आरटीआई आवेदन के बाद गोपनीयता का हवाला देकर उत्तर देने से मना कर दिया गया। कई यूजीसी-नेट और गेट क्वालिफाई योग्य छात्रों को बाहर कर अपात्रों को चयनित किया गया। स्कोर वैधता का बहाना बनाकर अयोग्य घोषित किया गया। डीआरडीओ जैसे संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी को बाहर कर अयोग्य व्यक्तियों को प्रवेश दिया गया।बिना हस्ताक्षर की अधिसूचनाएं और नियमों में मनमाना बदलाव वेबसाइट पर अपलोड किए गए। प्रो. तरुण ठाकुर, प्रो.भूमिनाथ त्रिपाठी द्वारा लॉबी द्वारा प्रवेश प्रक्रिया पर एकाधिकार चलाया गया; छात्रसंघ की अनुपस्थिति में यह और भी बढ़ गया।

अम्बेडकर चेयर और पर्चेज कमेटी द्वारा करोड़ों के फंड में गड़बड़ी, फर्जी उपस्थिति और ऑडिट में अनियमितताएं दर्ज की गईं। कथित आरईटी फर्जीवाड़े की केन्द्रीय समिति से निष्पक्ष जांच की मांग करने‌ वाले, छात्रों के खिलाफ फर्जी आंतरिक जांच और पुलिसिया  एफआईआर द्वारा प्रताड़ित किए जाने की कूट रचना करते हुए, कुत्सित प्रयास किया गया। हालांकि छात्रों से उक्त फर्जी शिकायतों की आशंका जताते हुए पहले ही पुलिस महानिदेशक मप्र. को एक विस्तृत पत्र भेज दिया था, जिससे आरईटी फर्जीवाड़ा के बचाव में विश्वविद्यालय से फर्जी शिकायत करवाने वालों पर उनका यह दाव भी उल्टा पड़ गया। आरोप है कि न तो जी.एफ.आर. 2017 के अंतर्गत किसी प्रकार का टेंडर जारी किया गया और न ही ई.ओ.आई. आमंत्रित की गई, जिससे परीक्षा आयोजन में पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। प्रश्नपत्र निजी ईमेल से एकत्र किए गए और बिना सील या यूनिक कोड वाले प्रश्नपत्र वितरित किए गए, जिससे गोपनीयता भंग हुई। ओएमआर शीट में हेराफेरी की आशंका भी जताई गई है। परिणामों में अपारदर्शिता स्पष्ट है—मुख्य परिसर में नाम छिपाए गए जबकि मणिपुर परिसर में नाम सार्वजनिक हैं। कुछ विषयों के परिणाम निजी तौर पर भेजे गए और चयन की प्रक्रिया संदिग्ध रही। एक ही परीक्षा के परिणाम तीन अलग-अलग तरीकों से कैसे जारी की जा सकती है।

पीड़ित छात्रों ने अपने पत्रों में यह भी उल्लेख किया है कि यह मामला केवल आईजीएनटीयू तक सीमित नहीं है, बल्कि यह केंद्रीय विश्वविद्यालयों की पारदर्शिता और शैक्षणिक ईमानदारी पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि निष्पक्ष सीबीआई जांच शीघ्र शुरू नहीं होती है, तो अन्य पीड़ित छात्र आंदोलन को मजबूर होंगे।

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