एसआई निर्दोष, हाई कोर्ट से 11 वर्षों बाद मिला न्याय, नही हुई बहाली, 2 माह में सेवा बहाली के निर्देश
अनूपपुर
जिले के रामनगर थाने में पदस्थ पुलिस उपनिरीक्षक सतीश द्विवेदी को उच्च न्यायालय जबलपुर ने ग्यारह वर्ष पश्चात निचली अदालत का फैसला पलटते हुए निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने पुलिस में पुनः वापसी का आवेदन देने के 4 माह बाद भी बहाली आदेश नहीं होने पर उच्च न्यायालय जबलपुर ने पुलिस महानिरीक्षक शहडोल को निर्देश दिया कि 60 दिवस के अंदर सेवा बहाली के आवेदन पर कार्यवाही करें।
जिले के रामनगर थाने में पदस्थ पुलिस उपनिरीक्षक सतीश द्विवेदी को दुर्भावना वश लोकायुक्त द्वारा ट्रैप करवाकर आरोपी बना दिया गया था, वर्ष 2013 के बाद ट्रायल कोर्ट ने महत्वपूर्ण बिंदुओं को नजर अंदाज करते हुए दोषी माना था, इसके बाद बर्खास्त कर दिया था। जिस पर सतीश द्विवेदी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश और विभाग के आदेश की अपील उच्च न्यायालय जबलपुर में की सिमे बताया गया कि रामनगर थाने में पदस्थापना के दौरान लोकायुक्त द्वारा ट्रैप करवाकर आरोपी बना दिया गया था जबकि प्रकरण उनके थाने क्षेत्र का था ही नहीं और उनके समक्ष जांच में भी नहीं था। उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सभी गवाहों और दर्ज प्रकरण की सूक्ष्मता से सुनवाई की और पाया कि जिस प्रकरण में पैसा लेने का आरोप द्विवेदी पर लगाया गया है वह प्रकरण उनके थाने क्षेत्र का था ही नहीं था और उनके समक्ष जांच में भी नहीं था, जिस पर उच्च न्यायालय उन्हें झूठे प्रकरण से निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया। इस निर्णय के बाद संबंधित शाखा में पुनः सेवा में बहाल किए जाने हेतु दिए गए आवेदन पर चार माह बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने पर सतीश द्विवेदी एक बार फिर उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करनी पड़ी, जिस पर उच्च न्यायालय ने पुलिस महानिरीक्षक शहडोल को निर्देश दिया कि 60 दिवस के अंदर सेवा बहाली के आवेदन पर कार्यवाही करें।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीपक कुमार पांडे ने कहां कि प्रत्येक शासकीय कर्मचारी का अधिकार है, वह दोषमुक्त होने पर पुनः समस्त लाभों को प्राप्त करेगा, स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए विभाग के कर्मचारी का संघर्ष विभाग को समझना चाहिए और उसे त्वरित बहाली का आदेश दिया जाना चाहिए।