अदानी समूह द्वारा भेंट की गई एंबुलेंस के पीछे जमीन अधिग्रहण की रणनीति?

अदानी समूह द्वारा भेंट की गई एंबुलेंस के पीछे जमीन अधिग्रहण की रणनीति?


*स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल*

अनूपपुर

जिले के बिजुरी क्षेत्र में अदानी समूह द्वारा हाल ही में एक एंबुलेंस भेंट की गई है, लेकिन यह भेंट समाजसेवा की भावना से कम और एक गहरी रणनीति का हिस्सा अधिक प्रतीत हो रही है। सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट के माध्यम से यह खुलासा किया गया कि इस एंबुलेंस को मुफ्त में न देकर, 8-10 लाख रुपये की लागत के एवज में क्षेत्र की जमीन अधिग्रहण की तैयारी की जा रही है। इस प्रकरण में कोतमा के वरिष्ठ समाजसेवी पंडित पुष्पेन्द्र उर्मलिया ने सवाल उठाए हैं कि यदि यह सचमुच जनहित में दान होता, तो इसे सहर्ष स्वीकार किया जाता। लेकिन जब इसके पीछे शर्तें और स्थानीय प्रशासन के साथ कथित सांठगांठ सामने आती है, तो यह संदेह पैदा करता है कि कहीं यह एक बड़ी साजिश तो नहीं?

सूत्रों के अनुसार, एक कथित राज्य मंत्री से इस एंबुलेंस का उद्घाटन करवाया गया, और फोटो सेशन के बाद यह भेंट "मंत्री मिनिस्टर्स के मार्फत" स्थानीय और जिला प्रशासन की जेब में चली गई। यह तरीका अदानी समूह की ओर से क्षेत्रीय नियंत्रण स्थापित करने का एक प्रयास प्रतीत हो रहा है। उर्मलिया ने तंज कसते हुए कहा कि ये व्यापारी लोग हैं, और किसी शवयात्रा पर भी व्यापारी तब तक अपना व्यापार नहीं छोड़ता जब तक कोई जीवित ग्राहक न रहे। अदानी समूह के ऐसे दान को उन्होंने "गुरु दक्षिणा" मानने से इंकार किया और कहा कि सक्षम व्यक्ति को पांचों उँगलियाँ बराबर समझनी चाहिए।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पहले भी क्षेत्र में मोजर बेयर और वेल्सपन ने इसी तरह के प्रलोभन देकर क्षेत्र का दोहन किया था, और परिणाम आज भी लोग भुगत रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस विषय को लेकर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अधिकांश लोग इसे जनसेवा की आड़ में व्यावसायिक स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश मान रहे हैं।

*"दान के नाम पर नियंत्रण की राजनीति?"*

किसी भी समाज में यदि व्यापारिक संस्थान जनकल्याण के लिए आगे आते हैं, तो यह सराहनीय है। किंतु जब उस जनसेवा के पीछे छिपे स्वार्थ और लाभ की नीयत हो, तो वह समाज के लिए संकट बन जाता है। अदानी समूह द्वारा की गई यह भेंट एक प्रश्नचिह्न खड़ा करती है — क्या जनसेवा अब सौदेबाजी का माध्यम बन गई है? यदि ऐसा है, तो यह न केवल लोकतंत्र की आत्मा के विरुद्ध है, बल्कि स्थानीय जनता की चेतना और अधिकारों के लिए भी एक गंभीर खतरा है। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करे।

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