नीलकंठ कंपनी बना शोषण का अड्डा, मजदूरों से 12 घंटे काम, आधा वेतन, नौकरी से निकालने की धमकी
*श्रमिकों पर सितम की इंतेहा, नियम, सुरक्षा, न इंसाफ मजदूर कहां जाए*
अनूपपुर
एसईसीएल के आमाडाडं ओपन कास्ट प्रोजेक्ट (ओसीपी) में कार्यरत नीलकंठ कंपनी पर स्थानीय मजदूरों के शोषण और भेदभावपूर्ण नीति अपनाने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। दस साल के ठेके पर खदान में काम कर रही यह कंपनी अब क्षेत्रीय लोगों के लिए शोषण का प्रतीक बन चुकी है। हालात इतने खराब हैं कि मजदूरों की पीड़ा अब आक्रोश में तब्दील होने लगी है। करीब 500 से ज्यादा मजदूरों को रोजगार देने वाली नीलकंठ कंपनी पर आरोप है कि वह क्षेत्र के बाहरी मजदूरों को प्राथमिकता देकर उन्हें पूरा वेतन और बेहतर सुविधा दे रही है, जबकि स्थानीय मजदूरों से कम वेतन में 12-12 घंटे काम कराया जा रहा है। यह सीधे-सीधे श्रम कानूनों का उल्लंघन है, जिसमें अधिकतम 8 घंटे काम के बाद श्रमिक को विश्राम देने का नियम है।
*सुरक्षा प्रशिक्षण बिना खतरे में जान*
चौंकाने वाली बात यह भी है कि अधिकांश मजदूरों को बीटीसी (बेसिक ट्रेनिंग कोर्स) तक नहीं कराया गया है। उन्हें खदान में कार्य करने के दौरान सुरक्षा, आपातकालीन प्रक्रिया या किसी दुर्घटना की स्थिति में क्या करना चाहिए – इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है। यह न केवल नियमों की अनदेखी है, बल्कि मजदूरों की जान से खेलने जैसा है।नीलकंठ कंपनी की मनमानी पर अभी तक प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर क्षेत्र में आक्रोश पनप रहा है, लेकिन मजदूर डरे हुए हैं – उन्हें डर है कि आवाज उठाने पर नौकरी से निकाला जा सकता है। सवाल ये है कि जब नियमानुसार काम और वेतन की मांग करना गुनाह बन जाए, तो लोकतंत्र में न्याय कहां मिलेगा?जदूर संगठनों और जागरूक नागरिकों ने मांग की है कि नीलकंठ कंपनी की कार्यप्रणाली की निष्पक्ष जांच कराई जाए, और जब तक मजदूरों के हितों की रक्षा सुनिश्चित न हो, तब तक कंपनी की ठेकेदारी पर रोक लगाई जाए। नीलकंठ कंपनी पर अब सिर्फ शोषण ही नहीं, दमनकारी रवैये के भी गंभीर आरोप लगे हैं। ठेके पर खदान संचालन कर रही कंपनी ने स्थानीय मजदूरों का जीना मुश्किल कर दिया है, और अब जो भी आवाज उठाता है, उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है।मजदूरों का कहना है कि जब वे कम वेतन, लंबी ड्यूटी और असुरक्षित कार्य व्यवस्था का विरोध करते हैं, तो कंपनी प्रबंधन की तरफ से सीधा जवाब मिलता है: "काम करना है तो चुप रहो, नहीं तो बाहर का रास्ता देखो।" यह रवैया श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाने जैसा है।
*लेबर कोर्ट में चल रहा है मामला*
हालांकि कुछ मजदूरों ने लेबर कोर्ट में अपना हक पाने के लिए केस दाखिल कर रखा है, लेकिन नीलकंठ कंपनी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता दिख रहा है। कंपनी की कार्यप्रणाली में न तो पारदर्शिता है, न ही जवाबदेही। मजदूरों को डराया जा रहा है, दबाया जा रहा है, और उनका हक खुलकर छीना जा रहा है।
*नियम, सुरक्षा, न इंसाफ मजदूर कहां जाए*
खदान में काम कर रहे 500 से अधिक मजदूरों में से ज्यादातर स्थानीय हैं, लेकिन उन्हें सबसे खराब हालातों में झोंक दिया गया है। नीलकंठ कंपनी की प्राथमिकता बाहरी लोगों को रोजगार देना और स्थानीय लोगों से कम वेतन में अधिक काम करवाना है। बीटीसी जैसे जरूरी सुरक्षा प्रशिक्षण भी नहीं दिए जा रहे, जिससे मजदूरों की जान हर पल खतरे में है।अब सवाल यह उठ रहा है कि एसईसीएल प्रबंधन और प्रशासनिक अधिकारी इस खुले शोषण पर चुप क्यों हैं? क्या मजदूरों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं बचा? अगर ऐसी मनमानी चलती रही, तो क्षेत्र में मजदूरों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा।