गणतंत्र का त्योहार है, नव वर्ष का उपहार व माता है संविधान की छब्बीस जनवरी
*छब्बीस जनवरी*
गणतंत्र का त्योहार है छब्बीस जनवरी।
नव वर्ष का उपहार है छब्बीस जनवरी।
स्वाधीनता दिवस की सगी छोटी बहन है,
माता है संविधान की छब्बीस जनवरी।
लाखों करोड़ों खर्च होते इसकी शान पै,
कुटिया में नंगी भूखी है छब्बीस जनवरी।
ओढ़े हैं रोशनी की चुनर महल इमारत,
दुल्हन सी लग रही है ये छब्बीस जनवरी।
गोदी में खिलाती है अपने रामलला को,
फिर पूजती श्रीराम को छब्बीस जनवरी।
कुर्बानी शहीदों की याद आतीं हैं उसे,
ले-ले के हिचकी रोती है छब्बीस जनवरी।
भाई नहीं रहा कभी बेटा नहीं रहा,
सीमा पै विधवा होती है छब्बीस जनवरी।
हर मुंह को निवाला मिले हर ह्रदय को खुशी,
आओ मनाऐं इस तरह छब्बीस जनवरी।
गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर