कुछ आईएएस व आईपीएस भी बेईमान होते हैं, यह सुनकर आश्चर्य होता है - प्रेमभूषण महाराज

कुछ आईएएस व आईपीएस भी बेईमान होते हैं, यह सुनकर आश्चर्य होता है - प्रेमभूषण महाराज

*जब किसी अयोग्य व्यक्ति को पद सौंपा जाता है तो उससे ईमानदारी की आशा नहीं करते*


अनूपपुर 

हमारे भारतवर्ष में आईएफएस, आईएएस और आईपीएस की नौकरी को सर्वोच्च बताया जाता है। इस पद को पाने के लिए विद्यार्थी अपना सर्वस्व त्याग करके तैयारी करते हैं। कठोर लगन के साथ की गई तैयारी फल परिणाम उन्हें इस परीक्षा में सफलता दिलाता है। इतना तपस्या करके पद प्राप्त करने वाले भी बेईमान हो जाएंगे यह कल्पना नहीं की जा सकती है। गहराई में जाकर देखें तो पता चलता है कि कुछ अयोग्य लोगों को इस पद पर बैठाने के कारण ही ऐसी घटनाएं होती हैं।

उक्त बातें अनूपपुर (मध्य प्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए चौथे दिन पूज्य प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए  कहीं।  

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में भगवान की बाल लीला और आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि प्रतिभा का हनन करके जब किसी अयोग्य व्यक्ति को पद सौंपा जाता है तो उसे ईमानदारी की आशा भी नहीं की जा सकती है। सर्वोच्च पद पर बैठे लोगों के सत्य आचरण का एक दूसरा भी कारण है और वह है संस्कार का अभाव। किसी को संस्कार सिखाया नहीं जा सकता संस्कार स्वयं ग्रहण करना पड़ता है। हमारे घर के बच्चे हमारे घर के वातावरण को देखकर ही संस्कार सीखते हैं। बच्चों से तीन चीज सीखने लायक है। अचिंत्य,  अपरिग्रहता और किसी से भी बैर नहीं।

महाराज ने कहा कि बच्चों के नामकरण में सावधानी रखना आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति के जीवन पर उसके नाम का बहुत प्रभाव पड़ता है। हमारी सनातन संस्कृति में बच्चों के नामकरण की एक विधिवत परंपरा है। इस परंपरा का पालन करने वाले परिवार में बच्चों के साथ ही साथ बड़े भी सुखी रहते हैं। भगवान अथवा देवी देवताओं के नाम के अनुरूप नाम रखने से परिवार का कल्याण होता रहता है।

जो भी अपना कर्म बिगाड़ लेता है, वही भयभीत रहता है। भगवान कभी किसी को भयभीत नहीं करते हैं। बाबा भोलेनाथ कहते हैं कि भगवान का धरती पर अवतरण, लोगों को निर्भय करने के लिए ही हुआ। भयभीत वह मनुष्य रहता है जिसने अपने जीवन में गलत कार्य किए हों।

 सनातन धर्म के सद्ग्रन्थों में बार-बार कहा गया है कि जीवन में अपने श्रेष्ठ की अवहेलना करने वाले खुद ही परिणाम भुगतते हैं। राम चरित मानस से हमें यह भी सीख मिलती है कि हम  अपने श्रेष्ठ या सद्गुरु की  बात  पर भरोसा करना सीखें।  श्रेष्ठ या सद्गुरु ने अगर कोई निर्णय लिया है  तो यह उन्होंने किसी भी परिस्थिति में सबका हित को ध्यान में रखते हुए ही लिया होगा।  उन्होंने कहा कि इस का सबसे सुंदर उदाहरण  रामजी का महर्षि विश्वामित्र के साथ धनुष यज्ञ में जाने का प्रकरण है।  महर्षि ने जब राम जी से पूछा कि धनुष यज्ञ में चलना है क्या? तो  राम जी के पास दो विकल्प थे, आश्रम के यज्ञ की रक्षा हो चुकी थी, तो वह चाहते तो वापस अयोध्या जी भी लौट सकते थे। परंतु उन्होंने  प्रश्न का उत्तर देने की जगह सीधे  मिथिला जाने की सहमति दे दी।  इसका दूरगामी परिणाम हमें  श्री सीता राम जी के विवाह के रूप में देखने को मिला। जो श्रेष्ठ हैं उन्हें  हर बात पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए ।  जितना संभव हो सके मौन रहना चाहिए और आवश्यकता हो तभी बोलनी चाहिए।  श्रेष्ठ  का हर बात पर बोलना, मर्यादा नहीं है।

महाराज ने कहा कि पाँच साल तक के बालक- बालिकाओं में बड़ी निर्मलता होती है। बच्चों की बाललीला ब्रह्मभाव की होती है। बालकों को यदि हम कोई संदेश देना चाहें तो वे नहीं मानते हैं, लेकिन जैसा हम करते हैं बच्चे भी वैसा ही करते हैं। यदि हम क्रोध करेंगे तो वे क्रोध करेंगे और कीर्तन करेंगे वे भी कीर्तन करेंगे, इसलिए बच्चों को हम अपने आचरण से समझाएं तो वह अवश्य समझ सकते हैं।

जीवन में उपस्थित होने वाली परिस्थितियों को स्वीकारने वाला ही सुखी रह पाता है। जब हम किसी भी स्थिति को अस्वीकार करते हैं तो यही हमारे दुःख का कारण होता है। जैसे आधा गिलास पानी भरा है तो इसे स्वीकारना सकारात्मक भाव है। लेकिन आधा गिलास खाली है मानकर अस्वीकार भाव में जाना दुःख का कारण होता है। आनन्द स्वयं लेना पड़ता है, कोई आपको देगा नहीं।  

पूज्य श्री ने कहा कि हम  चाहे जिस किसी भी व्यवसाय में जुड़े हों, किसी भी पेशे से जुड़े हों हमारे पास भगवान के भजन, उन्हें स्मरण करने के लिए पर्याप्त समय होना आवश्यक है। यही हमारे जीवन का असली साधन भी है। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो फिर हम अपने आप को ही ठग रहे हैं।

भगवान राम जी के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि बिना तपस्या के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। मनुष्य को अपने जीवन में अगर कुछ चाहिए तो उसे तपना होगा। जब हमारी पीढ़ी में कोई तप करता है तो हमें कुछ प्राप्त होता है और जब कई पीढ़ियां तप करती चली जाती हैं तब राष्ट्र और समाज के लिए कुछ विशेष प्राप्त होता है।

पूज्य प्रेमभूषण महाराज ने कहा - "आप भले ही दुनिया को ठगने में माहिर हों, लेकिन आप अपने को न  ठगिये। आज आदमी इतना व्यस्त हो चुका है कि उसके लिए भगवान के स्मरण के लिये भी समय नहीं है। हमारे मंदिर, हमारे तीर्थ स्थल, सत्संग, यज्ञ और कथा श्रवण करने के लिए भी उनके पास समय का अभाव है।  व्यस्त रहना अच्छी बात है लेकिन, अस्त व्यस्त रहना अच्छी बात नहीं है। 

महाराज ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने  व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

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