मैं लेखक छोटा हूं संकट बड़ा, प्रलेसं के राज्यस्तरीय बैठक में याद किया हरिशंकर परसाई को
देवास
परसाई जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर कलम चलाई थी। उनके अनुसार साहित्य में व्यंग्य कोई विधा नहीं होती साहित्य की हर विधा में व्यंग्य हो सकता है। परसाई जी ने कभी भी स्त्रियों पर व्यंग्य नहीं किया। उनका लेखन आज भी प्रासंगिक हैं।
ये विचार प्रगतिशील लेखक संघ राज्य कार्यकारिणी की बैठक के अवसर पर हरिशंकर परसाई स्मरण परिचर्चा में व्यक्त किये गए। प्रलेसं के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि आगामी वर्ष 2024 परसाई जी का जन्म शताब्दी वर्ष होगा। इस अवसर पर संपूर्ण देश में प्रलेसं द्वारा अनेक कार्यक्रमों में परसाई जी के अवदान को याद किया जाएगा। विनीत तिवारी ने कहा कि परसाई जी स्वयं को व्यंग्य लेखक नहीं मानते थे, उनके अनुसार साहित्य की हर विधा में व्यंग्य लेखन हो सकता है। म. प्र. प्रलेसं के महासचिव तरुण गुहा नियोगी ने कहा कि आगामी वर्ष में प्रलेसं के अनेक पुरोधाओं का जन्म शताब्दी वर्ष है। विख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर, रेखा जैन, गीतकार शैलेंद्र, महिला अधिकारों के लिए संघर्ष और बाल साहित्य का विपुल सृजन करने वालीं सांसद गीता मुखर्जी, उपन्यासकार रांगेय राघव पर भी कार्यक्रम होंगे। परसाई जी को ऐतिहासिक, साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से भी देखना होगा। उन्हें केवल व्यंग्य लेखक कहना उनका उचित मूल्यांकन नहीं है। परसाई जी कहते थे कि " मैं लेखक छोटा हूं संकट बड़ा हूं। " वे जीवन की विडंबनाओं पर लिखते थे। अनेक समाचार पत्रों में उनके स्तंभ छपते थे। परिवार, राज्य व समाज की उत्पत्ति, जर्मन आईडियोलॉजी आदि पुस्तकें पढ़ कर वे मार्क्सवाद के लिए प्रेरित हुए। जबलपुर में सांप्रदायिक दंगों को रोकने में परसाई जी ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
राजीव कुमार शुक्ला ने कहा कि परसाई जी कहते थे कि सामाजिक दृष्टि में रचनाकार का पक्ष तय होना चाहिए। सार्थक व्यंग सदैव कमजोरों और वंचितों के साथ खड़ा होता है। परसाई जी ने अपने लेखन में कभी भी स्त्री पर व्यंग नहीं किए, जबकि महिलाओं पर अनेक हास्य रचनाएं लिखी गई है। परसाई हमारे वैचारिक अभिभावक थे।
एसएन त्रिवेदी के अनुसार परसाई जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर कलम चलाई थी। वे आज भी प्रासंगिक हैं। आयोजन में इंदौर इकाई की सारिका श्रीवास्तव में परसाई जी का जीवन परिचय दिया। उनकी कहानी "सदाचार का ताबीज" का वाचन बबीता चौहान ने तथा कबीर के भजन का गायन दयाराम सारोलिया ने किया। अध्यक्षीय उद्बोधन देवास प्रलेसं इकाई की अध्यक्ष कुसुम वागडे़ ने दिया। संचालन डॉक्टर जुगल किशोर राठौर ने किया। आभार माना इकबाल मोदी ने। हरनाम सिंह और कैलाश सिंह राजपूत, भी मंचासीन थे।
