दबंग पब्लिक प्रवक्ता

सोयाबीन की फसल खराब, मुआवजा की मांग को लेकर किसान पहुँचे कलेक्ट्रेट


शहडोल

कम वर्षा, अधिक वर्षा, ओला, ठंड व कीट व्याधि से हमेशा फसलों को नुकसान हमेशा से होता आ रहा है, जिससे अन्नदाता किसान हमेशा परेशान होते आ रहे हैं। सरकार की तरफ़ से फसल नुकसान का सर्वे कराकर मुआवजा देने का काम करती तो है, मगर यह राहत राशि केवल किसानों के लिए ऊंट के मुंह मे जीरा जैसी कहावत साबित हों रही है। फसल नुकसान की 100% प्रतिशत राशि किसानों को कभी नही मिल पाती है। जिले के ग्राम पंचायत हरदी जनपद बुढ़ार के दर्जनों किसानों ने अतिवृष्टि व कीट व्याधि के कारण सोयाबीन की फसल नष्ट होने पर कलेक्टर कार्यालय शहडोल पहुँचकर कलेक्टर के नाम न्याय की गुहार लगाई है। लिखित शिकायत में पीड़ित किसानों में लेख किया है कि हम सैकड़ो किसानों ने सोयाबीन की फसल लगाए थे, जो की अतिवृष्टि और कीट व्याधि के कारण संपूर्णतः नष्ट हो गई थी, जिसका सर्वे कराकर सोयाबीन की क्षति राहत राशि किसानों को वितरण होना था जो कि आज दिनांक तक नहीं हो सका है, जिससे किसानों को बहुत सारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, सोयाबीन की फसल तो नष्ट हो गयी, जिससे किसानों के लाखों रुपए का नुकसान हो चुका है, मगर सरकार के द्वारा नुकसान हुए फसल का मुआवजा राहत राशि से किसानों को थोड़ी मदद मिल सकती थी वो भी मगर अभी तक कोई भी मदद नही मिल पाई है। किसानों ने कलेक्टर शहडोल से जल्द मुआवजा राशि दिलवाने की गुहार लगाई है। किसानों से बात करते हुए एसडीएम अम्रता गर्ग ने आश्वासन दिया है कि बजट डिमांड पूरा कराकर जल्दी से जल्द जिन किसानों को मुआवजा नही मिला है  राहत राशि दिलाने का आश्वासन दिया है। किसानों में मुकेश तिवारी, रिषभ सिंह, एजाज अहमद, प्रेमलाल, मैकू कोल के अलावा हरदी 32, खैरहा, पिपरिया, कठौतिया, कोदवार कला के किसान उपस्थित रहे।

अटल तुम्हारी जय हो, अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो, भारत मां की शान तुम्हारी जय हो



अटल तुम्हारी जय हो


अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो।

भारत मां की शान तुम्हारी जय हो।


राष्ट्रभाषा की सुगंध से,

तुमने दुनिया को महकाया।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर,

हिंदी का परचम लहराया।


हिंदी के तूफान तुम्हारी जय हो।

अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो।



भारत माता पूछ रही है,

तुम सा लाल कहां से लाए,

तुम जैसे अनमोल रतन को,

फिर से भारत रत्न दिलाए।


हंसमुख व्यक्ति महान तुम्हारी जय हो।

अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो


तुम तो एक अजातशत्रु थे,

दुश्मन के भी अटल मित्र थे।

अद्भुत और प्रखर वक्ता थे,

राजनीति के वृत्तचित्र थे।


रणनीतिज्ञ महान तुम्हारी जय हो।

अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो।


जन जन के जननायक थे तुम,

राष्ट्रभक्ति के गायक थे तुम।

भारत मां के वरदपुत्र तुम,

नीलकमल गीतों के थे तुम।


भारत की पहचान तुम्हारी जय हो।

अजर अमर हे अटल तुम्हारी जय हो।

  

-गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट उच्च न्यायालय पीठ ग्वालियर मध्यप्रदेश

हरनाम सिंह, मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी के ऊर्जावान सदस्य, लेखक, समालोचक हैं। इन्होंने गिरीश पटेल की पुस्तक “तब मैं कविता लिखता हूँ” को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, इसे आप भी पढ़िए।

                                             -आनंद पाण्डेय 

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*अविभाजित काव्य चेतना का सहज कवि गिरीश पटेल*

————————————————-पुस्तक- “तब में कविता लिखता हूं" पर पाठकीय टिप्पणी*

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              गिरीश पटेल उस शख्सियत का नाम है जिसने व्यक्तिगत अनुभव, अनुभूतियों के माध्यम से समाज में व्याप्त विसंगतियों को अपनी रचनाशीलता के माध्यम से उठाया है। इस काव्य संग्रह को पढ़ने की सिफारिश जिन साहित्यकारों, ने की उनमें गौहर रज़ा, कुमार अंबुज, उदय प्रकाश, सेवा राम त्रिपाठी के अलावा डॉक्टर सुखदेव सिंह सिरसा भी हैं। जिसके चलते पुस्तक पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ गई।

             अपनी शुभकामनाओं में डॉक्टर सिरसा ने कहा बे- मकसद शायरी गुनाह की तरह होती है। सांप्रदायिक नफरत हजूमी हिंसा और बाजार के आतंक ने हमारी संवेदना को सुन्न कर दिया है। आज प्रश्न एक चीख और उत्तर मौन में तब्दील हो गए हैं। इसी मौन को मुखर करने का माध्यम गिरीश पटेल का काव्य संग्रह *तब मैं कविता लिखता हूं* के रूप में सामने आया। 200 प्रृष्ठों में सिमटी सौ कविताएं गांव के गलियारों से होती हुई अंतरराष्ट्रीय फलक को छूती है।

               पुस्तक पढ़ने का प्रारंभ गौहर रज़ा साहब की पसंद की कविता *कौन हैं वे लोग*  से की जिसमें कोविड काल में सैकड़ो मीलों के अंतहीन फांसले  नापते उन मेहनतकशों की पीड़ा है, जो रातों-रात खानाबदोशों की कतार में खड़े कर दिए गए थे। कवि पूछता है कि आखिर किस अपराध की सजा भुगती  उन्होंने ? लेकिन जिस कविता को मैंने पसंद किया वह गिरीश पटेल की पहली कविता है जो उन्होंने 19 वर्ष की आयु में लिखी थी,*ऐ मॉं तेरे बिन* बेहद भावपूर्ण कविता जिसने अंतर्मन को भिगो दिया।

               *तंन्द्रा* कविता में वर्तमान समय की चुप्पी को मुर्गे की बांग के माध्यम से तोड़ा गया है। मुर्गा बांग देता रहा लोग सोते रहे। कविता *बहुत बड़ी चादर* में कोविड काल के दौरान लाशों के ढेर ही नहीं व्यापम की काली करतूतें, बिकाऊ मीडिया, बाबाओं का अधःपतन, कलबुर्गी, गौरी लंकेश की हत्या, पुरस्कार लौटाते लेखकों का सम्मान, ईवीएम की बाजीगरी, पुलवामा के शहीद सैनिकों के लाशें सभी ढक दिए गए हैं। राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए ज़मीर बेचते जज की लोलुपता कवि की नजर से नहीं बच सकी। पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना को संबोधित करते कवि कहता है "कभी तुमने जो नफरत के बीज बोए थे मुसलमानों में, अब हम उसे बो रहे हैं हिंदुओं के दिल में।

            *सौंदर्य की प्रतिमा* का बिंब फटी बिवाई से गुजर कर गृहणी की दिनचर्या में अनंतहीन थकावट के रूप में सामने आता है। धन कुबरों की मुनाफे की हवस पर *और में चुप रहूं* कविता में कवि कहता है कि "तुम्हारा बस चले तो हवाओं को रोक दो, सूर्य को कर दो स्विच ऑफ, तुम चाहो तो बेचो सवेरा, और जिसे चाहो दे दो रात। *नज़रिया* कविता में आत्म अवलोकन करते कवि मानता है "जिस दिन लेखनी आंसुओं के मूल्य को आंक सकेगी, उस दिन लेखन धन्य हो जाएगा। संग्रह में किसानों के पसीने के साथ बैलों की मेहनत को भी स्वीकारा गया है। *चाहत* कविता में कवि मरणोपरांत वृक्ष बनने की कामना करता है। 

              कुछ कविताएं व्यंग्य शैली में भी लिखी गई है। *बेरोजगारी*,*दायित्व निर्वाह* इसी श्रेणी की कविताएं हैं। शीर्षक कविता *...तब मैं कविता लिखता हूं* का प्रारंभ तो मन की उमंग से होता है, आगे चलकर किसानों के दर्द से होते हुए कवि बताता है जब गुंडे राज चलाते हैं तब मैं कविता लिखता हूं। करोना काल को गिरीश जी ने शिद्दत के साथ याद रखा है। कई कविताओं में उस काल के हर पहलू से टटोलना का प्रयास किया गया है। सामाजिक राजनीतिक विसंगतियों पर सचेत करते हुए कविता *पौ फटने से पहले* मैं कवि कहता है यदि पकड़ना हो साजिश के सूत्र तो, उठना होगा मुंह अंधेरे पौ फटने से पहले। संगठन की ताकत को कविता *थोथा चना* में रेखांकित किया गया है।

               गीत अध्याय में पहला ही गीत *जोड़ सको तो जोड़ो* में कवि झूठें डर अहम् और धार्मिक विद्वेष को तोड़ने का आह्वान करता है। अफ्रीकी देशों में से चीता आगमन को जिस तरह उत्सव और उपलब्धि प्रचारित किया गया गिरीश जी चुटकी लेते लिखते हैं "चीते के आने से देश संवर जाएगा... भूखा पेट भर जाएगा"।

              कुल मिलाकर अपने समय को आइना दिखाती कविताएं नए प्रतीक और बिंब की मांग करती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य की कविताओं में कुछ और नए प्रयोग देखने को मिलेंगे।


 हरनाम सिंह

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