ख्वाबों की सजती बारातें तुम्हें बुलातीं हैं, बिना नींद वाली ये रातें तुम्हें बुलातीं हैं।

ख्वाबों की सजती बारातें तुम्हें बुलातीं हैं, बिना नींद वाली ये रातें तुम्हें बुलातीं हैं।


*बिना नींद वाली रातें*


ख्वाबों की सजती बारातें तुम्हें बुलातीं हैं।

बिना नींद वाली ये रातें तुम्हें बुलातीं हैं।


अमलतास के संग पलाश ने 

पथ में स्वागत द्वार बनाए,

अमराई ने नये बौर से 

राहों में कालीन बिछाए।


ऋतु बसंत की ये सौगातें तुम्हें बुलाती है।


चांद उगेगा ना जाने कब 

यहां चांदनी तरस रही है,

विरहिन बदली के नैनों से 

याद किसी की बरस रही है।


अनगिन अश्कों की बरसातें तुम्हें बुलातीं हैं।


कुछ पल को सो जातीं आंखें 

तुम सपनों में आ जाते हो,

पलकों के खुलते ही जाने 

कितनी दूर चले जाते हो।


प्यार भरी शर्मीली बातें तुम्हें बुलातीं हैं।

बिना नींद वाली ये रातें तुम्हें बुलातीं हैं।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश।

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